Bihar Board Class 12 Music Notes

संगीत क्या है?

संगीत सूर एवं ताल युक्त ललित कला है जिसमें गायन, वादन, नृत्य तीनों का समन्वय होता है । यही कारण है कि इसे गीत वाद्य और नृत्य की त्रिवेणी कहा गया है। इस कला के माध्यम से कलाकार के मनोगत भाव स्वर, लय, ताल के साथ व्यक्त होता है।

संगीत को परिभाषित करते हुए यह उल्लेख करें कि संगीत के बिना जीवन का अस्तित्व संभव नहीं है।
अथवा 
संगीत एवं जीवन पर निबंध लिखें।
संगीत शब्द सम और गीत के मिलने से बना है सम का अर्थ समता तथा गीत के अर्थ गीत होता है। अर्थात  संगीत वह है जो गीत गाने अथवा सुनने वाला को समता  प्रदान करता है। जहां हर्ष विषाद खुशी चिंता कुछ भी रह जाए संगीत सब को मिटा कर समता अर्थात साम्यावस्था प्रदान करता है। सर्वप्रथम संगीत का चर्चा सामवेद में हुई थी कि गायन, वादन, नृत्य के समन्वय रूप को संगीत कहते हैं।
            संगीत भारतीय संस्कृति में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। संगीत के बिना मानव जीवन का अस्तित्व नहीं है। इस बात को धर्मशास्त्र भी स्वीकार करता है।
          " साहित्य संगीत कला विहीना:
            साक्षात पशु पुच्छ विषाणहीनः"
अर्थात साहित्य संगीत एवं कला से रहित व्यक्ति बिना पूछ के सिंह पशु के समान हैं। निश्चय आत्मक रूप से यह कहा जा सकता है कि संगीत के बिना मानव जीवन का अस्तित्व की कल्पना नहीं किया जा सकता है। संगीत के अभाव में मानव एक यंत्र बनकर रह जाएगा। जो कभी मनुष्य पसंद नहीं करता है क्योंकि उसके पास दिल है जब दिल दुखी या  प्रसन्न  होता है तब उसे संगीत की आवश्यकता होती है।
संगीत कितने प्रकार के होते हैं? 
भारतीय संगीत मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- 
भाव  संगीत:- वह संगीत जिससे स्वर ताल राग तथा लय  आदि नियमों में बांधकर आकर्षक रीति से गाया या बजाया नहीं जाता है उसे भाव संगीत कहते हैं।
शास्त्रीय संगीत:- वैसा संगीत जिसे सर्वर,  ताल , राग तथा लय आदि नियमों में बांधकर आकर्षक रीति से गाया जाता है,  उसे शास्त्रीय संगीत कहते हैं।

नाद  क्या है ? यह कितने प्रकार के होते हैं? 
संगीत उपयोगी वह ध्वनि जो मधुर हो नाद कहलाता है। संगीत में नाद प्रधान होता है। यह मानव कंठ अथवा वाद्य यंत्रों से उत्पन्न होता है।
नाद दो प्रकार का होता है- 
1. आहत नाद :- घर्षण से उत्पन्न होने वाला नाद को आहत नाद कहते हैं। जिसकी उत्पत्ति आघात, रगड़ और किसी वस्तु में हवा भरने या निकालने से होती है। 
2. अनाहत नाद:- बिना किसी आधार के उत्पन्न होने वाला नाद अनाहत नाद कहलाता है। जिसका उपयोग योगों की क्रियाओं से होता है।

रविंद्र संगीत के विषय में आप क्या जानते हैं?

रविंद्र संगीत गायन शैली को जन्म देने का श्रेय कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर को है वे कवि होने के साथ-साथ संगीत प्रेमी भी था। संगीत का यह संस्कार उन्हें शास्त्रीय संगीत के अच्छे जानकार अपने पिता श्री देवेंद्र नाथ ठाकुर से प्राप्त हुआ था। उनके अंतर से फूटने वाली भाव प्रधान रस की धाराओं ने शास्त्रीय नियमों की कठोरता से सर्वदा अलग हटकर जिस नई शैली को जन्म दिया वही रविंद्र संगीत कहलाया। इसकी रचनाएं बांग्ला भाषा में होने के कारण अत्यंत सरल एवं आकर्षक अपनी रचनाओं को उन्होंने समसामयिक धूनों  में सजाकर स्वयं गाया। उनके द्वारा श्रेष्ठ इस संगीत का भाव तत्व बुद्धि और विचार की सीमा का अतिक्रमण करके एक दिव्य मूर्ति प्रदान करने में समर्थ है।

वर्ण क्या है? यह कितने प्रकार के होते हैं? 
गायन वादन में गाने की क्रिया को वर्ण कहते हैं।
                    वर्ण निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है- 
स्थायी वर्ण:- एक स्वर को बार-बर उच्चारण
 अस्थाई वर्ण कहते हैं।
जैसे:- सा सा सा सा, रे रे रे रे, ग ग ग ग
आरोही वर्ण :- स्वर  का चढ़ते कर्म को आरोही वर्ण कहते हैं।
जैसे:- सा रे ग म प ध नि सां 
अवरोही वर्ण :- स्वरों का उतारते हुए क्रम को अवरोही वर्ण कहते हैं।
जैसे :- सां नि ध प म ग रे सा 

लय क्या है? यह कितने प्रकार के होते हैं? 
गायन वादन तथा नृत्य में गति में समानता बनाए रखने को ही लय  कहते हैं।
लय  तीन प्रकार के होते हैं- 

विलंबित लय:- गायन वादन तथा नृत्य के क्रम में धीमी गति कायम रखने को ही विलंबित लय कहते हैं।
मध्य लय :- ना अधिक तेज ना अधिक धीमी गति कायम रखने को मध्य लय  कहते हैं।
द्रुत लय :- तेज गति को कायम रखने को द्रुत लय कहते हैं। 

शास्त्रीय संगीत की उपयोगिता पर प्रकाश डालें? 

स्वर एवं लय  शास्त्रीय संगीत का मुख्य दो आधार हैं । शास्त्रीय संगीत के साधना से स्वर एवं ताल में अच्छा अधिकार हो जाता है। इसीलिए जितने भी संगीतज्ञ है चाहे वह अर्ध शास्त्रीय संगीत फिल्मी संगीत या लोक संगीत गाये पहले वे शास्त्रीय संगीत का साधना करता है। अगर आप शास्त्रीय संगीत के साधना किए बिना भक्ति भजन गीत सफलतापूर्वक गाना चाहते हैं तो आपको निराश होना पड़ेगा। 
           चलते फिरते आपको ऐसा बच्चा मिल जाएगा जो फिल्मी गीत का सच्ची नकल कर लेता है लेकिन उनका सीमा वहीं तक है। वे केवल याद किया हुआ गाना को दोबारा गा सकता है। उनको मालूम नहीं रहता कि वे किस  स्वर एवं ताल में गा रहा है । शास्त्रीय संगीत से यह जानकारियां मिलती है जिससे भविष्य में वह नया गीत का रचना कर सकता है।

लोक संगीत क्या है? 

लोक संगीत या लोकगीत लोक जीवन का मनोहर झांकी प्रस्तुत करने वाला मानव का एक ऐसी संगीत है जो मानव के आकांक्षा पर्व त्योहार धार्मिक उत्सव फसलों की कटाई बुवाई शादी व्याह, दैनिक कार्यकलाप आदि का मनोहर झांकी प्रस्तुत करता है। लोक संगीत गांव तथा शहर दोनों जगह सामान उल्लास के साथ गाया बजाया जाता है। लोक संगीत में ग्रामीण के जीवन में आने वाली उतार-चढ़ाव सुख दुख आदि की भावनाओं का भी मनोहर वर्णन मिलता है।
     यदि कहा जाए कि लोक संगीत ही शास्त्रीय संगीत का जनक है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा। क्योंकि शास्त्रीय संगीत स्वर ताल तथा नाद के दृष्टिकोण से लोक संगीत का ही अनुसरण करता है। लोक संगीत के अनेक लोक धुन शास्त्रीय नियमों में अवध होकर नए साल का रूप धारण किया है।
आतः लोक संगीत ही शास्त्रीय संगीत का जनक है।
पंडित पन्नालाल घोष की जीवनी लिखें? 
आधुनिक युग के बांसुरी वादक ओं में पंडित पन्नालाल घोष सर्वाधिक प्रसिद्ध है। बांसुरी की प्रति पंडित घोष की रूचि शुरू से ही थी। अपने अभ्यास के द्वारा उन्होंने बांसुरी वादन परिपक्वता प्राप्त की। वे 1925 में कोलकाता की एक फिल्म कंपनी में काम करने लगे। साल 1938 ईस्वी में वे साई कला नृत्य मंडल के साथ यूरोपीय देशों की यात्रा पर गए। जहां से 6 महीना के बाद लौटे। तब से वह मुंबई संगीत निर्देशन का काम करने लगा। पंडित पन्नालाल घोष ने 1947 ईस्वी में सर्वोच्च कलाकार उस्ताद अलाउद्दीन खान साहब को अपना गुरु स्वीकार किया। तब से उन्हीं के मार्गदर्शन में बांसुरी विद्या को समृद्धी करने लग गए।
   उनकी बांसुरी वादन की सबसे बड़ी विशेषता कि वह तीन सप्तकों  के लिए तीन बांसुरी से अत्यंत सफलता के साथ वादन करते थे। आज भी उनका श्रीराग तथा अन्य राघव का रिकॉर्ड सुना जा सकता है। जो सुनने वालों को मंत्र मुक्त कर देता है।

उस्ताद विलायत खान की जीवनी लिखिए? 

आधुनिक युग के सितार वादक ओं में उस्ताद विलायत खां एक सर्वश्रेष्ठ सितार वादक के रूप में प्रसिद्ध है। उनके पिता स्वर्गीय इनायत खान विश्व प्रसिद्ध सितार वादक थे। उन्हें संगीत की शिक्षा अपने पिता से ही प्राप्त हुआ। उनकी माता भी अपने समय की प्रसिद्ध गायिका थी जो अपने मार्गदर्शन में विलायत खां को 10 से 12 घंटे सितार का अभ्यास कराती थी। उन्हें अपना नाना वंदे हसन खान से गायन तथा सूर बाहर की भी शिक्षा प्राप्त हुई। उस्ताद विलायत खान ने अपने देश के बड़े-बड़े सम्मेलनों में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करने के अतिरिक्त देश सीमा से बाहर यूरोपीय देशों में जाकर एक से अधिक मनोहारी कार्यक्रम प्रस्तुत कर विश्व में अपने ख्याति अर्जित की।

 प्रश्न:- स्वामी हरिदास का परिचय दें। 
भारतीय संगीत के रक्षक स्वामी हरिदास का जन्म सन 1537  में भादो मास में जन्माष्टमी के दिन मथुरा जिला का राजपुर ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम आसुधीर तथा माता का नाम गंगा देवी था। यह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के स्वामी था। बाल्यकाल से ही संगीत के संस्कार उनके अंदर विद्यमान था। 25 बरस के अल्पायु में ही सन्यास ग्रहण कर हुए वृंदावन चल गए। वृंदावन में निधिवन निकुंज कि एक कुटिया में रहने लगे। वे बहुत ही साधारण ढंग से रहते थे। एक मिट्टी का बर्तन और एक गुदड़ी यही स्वामी जी की संपत्ति थी।
कहां जाता है कि स्वामी जी ने नाद के माध्यम ब्रह्म का साक्षात्कार किया था। स्वामी जी अपना कुटिया छोड़कर कहीं नहीं जाते थे। यह कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। वृंदावन में स्वामी जी ने ब्रज भाषा में अनेक ध्रुपद गीतों की रचना की। उत्तर भारत में जो कुछ भी संगीत हमें आज मिलता है वह सब किसी ना किसी रूप से स्वामी जी से ही संबंध है। ब्रज में जो रासलीला आज प्रचलित है उसको स्वामी हरिदास की ही देन समझना चाहिए।

 प्रश्न:- अमीर खुसरो की संगीत में क्या देन है? 
आमिर खुसरो ही वह प्रथम व्यक्ति थे जहां से आधुनिक संगीत के सूत्र का पता चला है। उनका संगीत का पति महत्वपूर्ण योगदान ही उन्हें आधुनिक संगीत का सर्वोच्च पद प्रदान करता है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के पटियाला में सन 1253 में हुआ था। उनका निधन 1332 में 89 वर्ष की आयु में हुआ था। उनका पिता का नाम मोहम्मद सैफुद्दीन था। अपने आध्यात्मिक गुरु हजरत निजामुद्दीन औलिया का प्रेम भक्त थे। जिनसे उन्हें संगीत साहित्य का प्रेरणा प्राप्त हुआ। उन्होंने संगीत संबंधी अनेक पुस्तकों की रचना की। वे फारसी, अरबी, उर्दू आदि कई भाषाओं के विद्वान थे।
आधुनिक संगीत के अंतर्गत अमीर खुसरो द्वारा रचित प्राचीन रागों से पृथक कई राग एवं ताल है। जिनमें सहना, सहज गिरी, आदि प्रसिद्ध है। उन्होंने ही छोटा ख्याल गायन शैली तथा कव्वाली, तराना आदि की खोज की थी। जिसकी दरबारों में काफी प्रशंसा हुई।
प्रश्न:- पंडित कृष्ण राव शंकर का संगीत में योगदान को लिखें।
उत्तर:- पंडित कृष्ण राव का जन्म ग्वालियर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित शंकरराव था जिनसे उन्होंने संगीत की शिक्षा प्राप्त किया। आपने संगीत से संबंधित अनेक पुस्तकों की रचना किया। जिनमें "संगीत सरगम सार", "संगीत प्रवेश", तथा "संगीता अलाप संचारी", आदि पुस्तके प्रसिद्ध है। 1914 को अपने ग्वालियर में शंकर गंधर्व संगीत विद्यालय का स्थापना किया। आपकी गायन शैली का सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि आप प्रारंभ से ही लय कायम रखते थे।
प्रश्न:- उस्ताद अलाउद्दीन की जीवनी लिखें।
उत्तर:- आधुनिक युग में सारद वादकों में उस्ताद अलाउद्दीन सर्वाधिक प्रसिद्ध है। वह सारद  के साथ-साथ पखवाज, वायलिन, बांसुरी, सितार, भी बजाता था।
उस्ताद अलाउद्दीन का जन्म 1870 को त्रिपुरा में हुआ था । उनके पिता का नाम साधु खां था। जो संगीत के अच्छे जानकार थे।उस्ताद अलाउद्दीन संगीत की शिक्षा उससे ही प्राप्त की। प्रसिद्ध सरोद वादक अहमद अली खान से शारद बजाना सीख कर ध्रुपद तथा धमार  गायकी की  शिक्षा प्राप्त किया। आपका प्रिय शिष्य पंडित रविशंकर था।
आपका मृत्यु 6 सितंबर 1972 को हो गया।


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